गंगरेल बांध के किनारे बसी,नदी में डूब चुके 52 गांवों की अधिष्ठात्री देवी माँ

धमतरी इलाके मे देवी शक्तियो का हमेशा से ही वास रहा है, लेकिन गंगरेल की हसीनवादियों में विराजमान अंगारमोती माता की महिमा निराली है। चैत्र नवरात्र के इस पावन पर्व में लोग माता की भक्ति के रंग में डूबे हुए हैं और इस दरबार मे हर रोज आस्था का सैलाब उमड़ रहा है। नवरुपों में पूजे जाने जाने वाली माता का यह रुप यथा नाम तथा गुणो वाली है जो सदियों से इलाके की रक्षा करते आ रही हैं।
मां अगांरमोती का भव्य दरबार
शक्ति और भक्ति के इस सगंम मे कई चमत्कार भी होते रहते है और इस सिद्धपीठ से कोई श्रृद्धालु निराश नहीं लौटता यही वजह है कि हर नवरात्र में आस्था की ज्योत जलाने इलाके के अलावा दूरदराज के लोगों का यहां तांता लग जाता है। धमतरी मे गगंरेल के पहाड़ों के बीच में विराजित मां अगांरमोती का यह भव्य दरबार बीते छ: सौ सालों के इतिहास को अपने अन्दर समेटे हुए है। जब माता दुर्गा का यह रुप अब डूबान मे आ चूके चवरगांव के बीहड़ में स्वंय प्रकट हुई और अपने प्रभाव से पूरे इलाके को आलौकित कर दिया और जब 1972-76 मे बांध बनने से पूरा गांव डूब गया तो भक्तों ने नदी के किनारे माता का दरबार बना दिया।
चैत्र नवरात्र के चलते के गांवों में जसगीत, देवी जागरण सहित कई विविध धार्मिक कार्यक्रम की शुरूआत भी हो गई है। पूरे चैत्र नवरात्र तक पुरूर के मौली माता मंदिर, जगतरा समिति दुर्गा मंदिर, कनेरी स्थित मां काली मंदिर सहित आमदी, कुकरेल, भखारा,कोलियारी, भटगांव, सोरम, नवागांव, लोहरसी में कई कार्यक्रम होंगे। चैत्र नवरात्र में उपवास रखकर देवी अराधना करने करने वाले व्रतधारी श्रध्दालु फलाहार करते हैं। ऐसे में फलों की डिमांड भी बढ़ जाती है।
संतान प्राप्ति के लिए एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है.
इसमें एक कतार में महिलाएं अगरबत्ती और नारियल लेकर पेट के बल दंडवत जमीन पर लेट जाती हैं. इसके बाद ढेर सारे बैगा उनके ऊपर से गुजरते हैं. मान्यता है कि जिस महिला के ऊपर बैगा का पैर पड़ता है निश्चित तौर पर संतान प्राप्ति होती है. इसे माता अंगार मोती का आशीर्वाद कहा जाता है.खासकर वे महिलाएं आती हैं जिनके बच्चे नहीं होते हैं. औलाद की लालसा में हजारों की संख्या में महिला श्रद्धालुओं की भीड़ यहां जुटती है. इसके बाद मान्यता के अनुसार निसंतान महिलाओं को बैगा अपने पैरों से कुचलते हुए मंदिर तक जाते हैं.








