ध्रुव जैसे छोटे बालक को नारायण के दर्शन हुए भक्ति से सबको भगवान मिल सकते है

राकी साहू लवन – समीपस्त ग्राम कोरदा मे चल रही भागवत कथा के तृतीय दिवस सती चरित्र एवं ध्रुव चरित्र का वर्णन करते हुए कथावाचक मनोज दुबे ने कहा कि राजा उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो भार्याएं थीं। राजा उत्तानपाद के सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र हुए। सुनीति बड़ी रानी थी, पर राजा उत्तानपाद का प्रेम सुरुचि के प्रति अधिक था। एक बार राजा उत्तानपाद ध्रुव को गोद में लिए बैठे थे, तभी छोटी रानी सुरुचि वहां आई। अपने सौत के पुत्र ध्रुव को राजा की गोद में बैठे देख कर वह ईर्ष्या से जल उठी। झपटकर उसने ध्रुव को राजा की गोद से खींच लिया और अपने पुत्र उत्तम को उनकी गोद में बिठाते हुए कहा, रे मूर्ख! राजा की गोद में वही बालक बैठ सकता है, जो मेरी कोख से उत्पन्न हुआ है। तू मेरी कोख से उत्पन्न नहीं हुआ है। तुझे इनकी गोद में तथा राजसिंहासन पर बैठने का अधिकार नहीं है। यदि तेरी इच्छा राज सिंहासन प्राप्त करने की है तो भगवान नारायण का भजन कर। उनकी कृपा से जब तू मेरे गर्भ से उत्पन्न होगा तभी राजपद को प्राप्त कर सकेगा। बालक ध्रुव अल्पकाल में ही उसकी तपस्या से भगवान नारायण उनसे प्रसन्न होकर उसे दर्शन देकर कहा, हे राजकुमार! मैं तेरे अन्तःकरण की बात को जानता हूं। तेरी सभी इच्छाएं पूर्ण होंगी। आगे ध्रुव वंश का विस्तार से वर्णन किया.