लाहोद

श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह प्रसंग सुन भावविभोर हुए श्रोता

संतोष वर्मा के द्वारा खम्हारडीह में कराई जा रही श्रीमद भागवत कथा, बड़ी संख्या में श्रद्धालु बाराती बनकर झूमते नाचते हुए कथा पंडाल पहुंचे

विजय सेन लाहोद समीपस्थ ग्राम खम्हारडीह मे संगीतमय श्रीमद् भागवत महापुराण सप्ताह ज्ञान के सप्तम दिवस मंगलवार को कथावाचक पंडित रामखिलावन पाण्डेय ने व्यास पीठ से श्रीकृष्ण बाल लीला, कंस वध और रुक्मिणी विवाह की कथा का भावपूर्ण चित्रण किया। कहा कि हमारा मन ही मथुरा है और यह तन ही गोकुल है। यदि भगवान को पाना चाहते हो तो मन को मधुरा बना लो। जिसका मन पवित्र हो जाता है यह मधुरा बन जाता है। भगवान को वही पाता है जो मलिनता को दूर कर लेता है। पांच कर्मेन्द्री, पांच हानेन्द्री दस इन्द्रियों से बना हुआ यह शरीर ही गोकुल है। धन्य होना चाहते हो तो तन और मन को परमात्मा को समर्पित करदो लाहोद (खम्हारडीह)में भागवत कथा का प्रसंग सुनाते कथाचक और अन्य। दो। इस दौरान श्रीकृष्ण-रुक्मिणी का वेश धारण किए कलाकारों पर कथा श्रवण करने आए भागवत प्रेमियों ने जमकर पुष्प वर्षा की। साथ ही विवाह के मंगल गीत गाते हुर नृत्य भी किए। इस मौके पर बाजे -गाजे के साथ निकाले गए कृष्ण-रुक्मिणी विवाह की आकर्षक झांकी ने श्रद्धालुओं का मन मोह लिया। तो वहीं संगीतमय कृष्ण भजनों पर रसिक श्रोता ने खूब थिरके। कथा के मध्य भगवान पूजा-अर्चना की और मंगल आरती

श्रीकृष्ण की धूमधाम के साथ विवाह संपन्न कराया। वहीं बारात निकाली गई। बारात में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु बाराती बनकर झूमते नाचते हुए कथा पंडाल पहुंचे। इस दौरान भक्त भगवान श्री कृष्ण की महिमा पर आधारित भजनों की मोठी तान पर थिरकते हुए बैंड बाजों की मधुर धुन के साथ चल रहे थे। इस अवसर पर वरमाला धूमधाम से संपन्न हुआ। श्रद्धालुओं ने श्रीकृष्ण और धोकर बुद्धिमता व न्यायप्रियता के कथावाचक पंडित रामखिलावन ने कृष्ण-विवाह प्रसंग पर बोलते हुए कहा कि, श्रीकृष्ण के साथ हमेशा देवी राधा का नाम आता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं में यह दिखाया भी था कि राधा और वह दो नहीं बल्कि एक हैं, लेकिन देवी राधा के साथ श्रीकृष्ण का लौकिक विवाह नहीं हो पाया। देवी राधा के बाद भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय देवी रुक्मिणी हुई। रुक्मिणी और कृष्ण के बीच प्रेम कैसे हुआ इसकी बड़ी अनोखी कहानी है। इसी कहानी से प्रेम की नई परंपरा की शुरुआत भी हुई। देवी रुक्मिणी विदर्भ के राजा भगवान को उपहार भी भेंट की। इस दौरान श्रद्धालुओं ने नृत्य करते हुए जयकारे लगाए तो माहौल धर्ममय हो गया। पंडाल में सारा जनमानस भाव विभोर होकर झूम उठे। वहीं लिए जानी जाती थी रुक्मिणी भीष्मक की पुत्री थीं। रुक्मिणी अपनी बुद्धिमता, सौंदर्य और न्यायप्रिय व्यवहार के लिए प्रसिद्ध थीं। रुक्मिणी का पूरा बचपन श्रीकृष्ण के साहस और वीरता की कहानियां सुनते हुए बीता था। जब विवाह की उम्र हुई तो इनके लिए कई रिश्ते आए लेकिन उन्होंने सभी को मना कर दिया। उनके विवाह को, लेकर माता-पिता और भाई चिंतित थे। बाद में रुक्मिणी की श्री कृष्ण से विवाह हुआ। कथा श्रवण करने बड़ी संख्या में श्रोतागण कथा पंडाल पहुंच धर्म लाभ अर्जित कर रहे हैं। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। सजीव झांकियों भी सजाई गई थी। कथा के दौरान भक्तिमय संगीत ने श्रोताओं को आनंद से परिपूर्ण किया। कृष्ण-रुक्मिणी माता पर जमकर फूलों की बरसात हुई।

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