पं शास्त्री ने पांचवें दिन राम वनवास की कथा का किया वर्णन

राम वनवास की कथा सुनकर भाव विभोर हुए श्रोता
केशव साहू। घोटिया (पलारी)।
भगवान श्रीराम ने अपने कुल की मर्यादा को ध्यान में रखकर व अपने पिता के वचन की रक्षा के लिए सारा राजपाठ त्यागकर वन में चले गए। इससे हमें सीख लेना चाहिए कि हमें स्वयं की चिंता न करते हुए यदि जरूरत पड़े तो अपने परिवार समाज व देश के लिए सबकुछ त्याग देना चाहिए। उक्त प्रसंग खरतोरा में आयोजित श्रीमद भागवत महापुराण में कथा वाचक चाउर वाले बाबा पं नरेंद्र नयन शास्त्री जी ने सुनाया। पांचवें दिन साहू परिवार द्वारा श्री भागवत की आरती कर कथा का शुभारंभ किया गया।
पं नरेंद्र नयन शास्त्री जी ने आगे कहा कि कौशल्या ने कहा कि बेटे को वनवास होने के बावजूद भी मै अपनी पति की बात वचन याद रहे। मां कौशल्या ने किसी को दोषी नहीं बताया बल्कि कहा कि यदि मां कैकई ने वन जाने को कहा है तो राम वनगमन तुम्हारे लिए सैकड़ों अयोध्या के समान है। वे कहती हैं कि सुख और दुख तो अपने ही कारणों से होते हैं। जब भगवान श्रीराम लखन, सीता सहित वन गमन के लिए निकलते हैं तो सभी अयोध्यावासी भी भगवान के पीछे निकल पड़े। महाराज द्वारा जब यह प्रसंग सुनाया गया तो पंडाल में उपस्थित सभी श्रोताओं के भाव विभोर हो गए।
कथा व्यास शास्त्री जी ने विविध चौपाइयों के माध्यम से कहा कि राजा दशरथ दर्पण में अपना बुढ़ापा देखकर यह निर्णय लिया कि हमें तपस्या करने चल देना चाहिए। भगवान की भक्ति में मन लगाना चाहिए। वर्तमान में परिस्थितियों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि आज के बुजुर्गों को राजा दशरथ से प्रेरणा लेना चाहिए और शरीर में ताकत रहते एवं आंख में रोशनी रहते हमें सारी जिम्मेदारी अपने वारिस को सौंपकर भगवान के सुमरन में लग जाना चाहिए। राजा दशरथ ने अयोध्या वासियों के समक्ष श्रीराम के राज्याभिषेक का प्रस्ताव रखा। मगर मामला आने वाले दिन पर छोड़ दिया। जिसका परिणाम काफी दुखद रहा। कथा में महाराज जी ने आगे बताया कि अच्छे कार्यों को टालने की जगह शीघ्र करना ही श्रेयस्कर होता है। सभी को सदैव प्रसन्न रहने की प्रेरणा भगवान श्रीराम से लेना चाहिए। भगवान जहां भी रहते हैं प्रसन्न रहते हैं। दुख उनसे कोसों दूर रहता है।
कैकई राम चरित्र में महान पात्र
राम चरित्र में मां कैकई बहुत ही महान पात्र हैं। यदि कैकई मां न होती राम कथा बालकाण्ड में ही समाप्त हो जाती है। कैकई मां ने ममता में साहब भरकर स्नेह का दर्शन कराया गया है। मां कैकई अगर राम वनवास नहीं कराती तो अखंड भारतवर्ष का स्वरूप मर्यादा से ओतप्रोत करके रामराज्य की स्थापना नहीं हो पाती। ममता में तनिक कठोरता का होना अनिवार्य है। यदि कैकई केंद्र में होती न तो ममता परिपूर्ण कहानी न होती। ममता में कठोरता होती। न जो तब दिव्य अवध राजधानी न होती। सीय शक्ति लखन न विराग होते। तब राम में ग्यान को पानी न नहोती। मरता नहीं राम से रावण कभी, कैकई अवध की रानी न होती। श्रीराम जो कि मर्यादा पुरूषोत्तम बनाने में मां कैकई अपना अनुराग भाग और सौहाद्र सबकुछ समर्पित कर दिया। इस अवसर पर आयोजक जीवराखन, कैलाश, तिलक, फूलसिंह, कुंदन, मनीष, रामजी, राजेन्द्र, दीपक सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित थे।