पलारी

खरतोरा में भागवत कथा श्रवण करने पहुंची शकुंतला

पं नरेंद्र नयन ने सुनाया बैकुंठ दर्शन, कंस वध और रूखमणी विवाह का प्रसंग

घोटिया (पलारी)। ग्राम खरतोरा में 1 जून से 9 जून तक श्रीमद् कर्णि भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ सप्ताह का आयोजन किया गया है। कथा के सातवें दिन शुक्रवार को कथा व्यास चाउर वाले बाबा नरेंद्र नयन शास्त्री जी ने बैकुंठ दर्शन, रासपंचाध्यायी कंस वध व रुखमणी विवाह के प्रसंगों का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि बैकुंठ जाने के लिए भक्ति आवश्यक है, जो श्रीमद् भागवत कथा के श्रवण से प्राप्त होती है। बैकुंठ में धर्म और पुण्य नहीं बल्कि भक्ति ही आवश्यक होती है। लोगों की मदद करना दान, दक्षिणा करने से पुण्य मिलती है और इसके साथ ही भक्ति भी आवश्यक है।

भागवत कथा श्रवण करने से मिलती हैं शांति – शकुंतला

पूर्व संसदीय सचिव शकुंतला साहू भागवत कथा श्रवण करने खरतोरा पहुंची थी। शकुंतला साहू ने कथा व्यास जी से आशीर्वाद प्राप्त किया। पश्चात शकुंतला साहू ने श्रोताओं से कहा भागवत कथा श्रवण करने से मन को शांति मिलती है। सभी लोग खाली समय में कथा अवश्य सुना करे। भागवत कथा के आयोजन से गांव का माहौल भी भक्तिमय व शांतिमय रहता है। इस आयोजन के लिए आयोजक परिवार को शुभकामनाएं।

कथा व्यास नरेंद्र नयन शास्त्री ने बताया कि भगवान विष्णु के पृथ्वी लोक में अवतरित होने के प्रमुख कारण में एक कारण कंस वध भी था।कंस के अत्याचार से पृथ्वी त्राह त्राह जब करने लगी तब लोग भगवान से गुहार लगाने लगे। तब कृष्ण अवतरित हुए। कंस को यह पता था कि उसका वध श्रीकृष्ण के हाथों ही होना निश्चित है। इसलिए उसने बाल्यावस्था में ही श्रीकृष्ण को अनेक बार मरवाने का प्रयास किया, लेकिन हर प्रयास भगवान के सामने असफल साबित होता रहा। अंत में श्रीकृष्ण ने अपने मामा कंस का वध कर मथुरा नगरी को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिला दी। कंस वध के बाद श्रीकृष्ण ने अपने माता-पिता वसुदेव और देवकी को जहां कारागार से मुक्त कराया, वही कंस के द्वारा अपने पिता उग्रसेन महाराज को भी बंदी बनाकर कारागार में रखा था, उन्हें भी श्रीकृष्ण ने मुक्त कराकर मथुरा के सिंहासन पर बैठाया। उन्होंने आगे बताया कि रुकमणी जिन्हें माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। वह विदर्भ साम्राज्य की पुत्री थी, जो विष्णु रूपी श्रीकृष्ण से विवाह करने को इच्छुक थी। लेकिन रुकमणी जी के पिता व भाई इससे सहमत नहीं थे, जिसके चलते उन्होंने रुकमणी के विवाह में जरासंध और शिशुपाल को भी विवाह के लिए आमंत्रित किया था, जैसे ही यह खबर रुकमणी को पता चली तो उन्होंने दूत के माध्यम से अपने दिल की बात श्रीकृष्ण तक पहुंचाई और काफी संघर्ष हुआ युद्ध के बाद अंततः श्री कृष्ण रुकमणी से विवाह करने में सफल रहे।

इस अवसर पर सरपंच सविता वर्मा, भूनेश्वरी साहू, रूपेश कुमार, विवेक साहू, कमला साहू, सेवकराम, सेवती साहू, अशोक साहू,भानू साहू, संतोष साहू, आरती साहू, विष्णु प्रसाद, सुमित्रा साहू सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित रहे।

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