सरखोर के बच्चो ने विज्ञान केन्द्र अवलोकन कर स्वयं सीखा

लवन। विगत दिवस शासकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय सरखोर के विद्यार्थियों द्वारा रायपुर स्थिर विज्ञान केन्द्र, पुरखौती मुक्तागन, दुधाधारी मठ आदि ऐतिहासिक स्थलों का शैक्षणिक भ्रमण किया। विज्ञान केन्द्र का अवलोकन कर स्वयं करके सीखना अनुपम और अद्वितीय लगा। शिक्षकों द्वारा बच्चों को अलग-अलग समूहों में बांटकर मार्गदर्शन करते हुए कठिन अवधारणाओं को समझाया। यहंा बच्चों ने विज्ञान के अलावा छत्तीसगढ़ की पारम्परिक कला, संस्कृति, रहन-सहन, पहनावा को देखा। उनके लुप्त हुए आंचलिक छत्तीसगढ़ी भाषा में नाम जानकर बहुत खुश हुए। जैसे नग मौरी, बहुटा, चिकारा, हुड़का आदि। प्राकृतिक सौन्दर्य और प्रमुख संसाधन हमें आकर्षित किया। साथ बच्चों के इस पल को यादगार बनाने कुछ फोटोग्राफ लिए। हमारे साथ आये कुछ पालको ने इसे बहुत प्रशंसनीय शैक्षणिक भ्रमण बताया। सभी एक घेरे में बैठकर प्रीति भोज का आनंद लिया। तत्पश्चात पुरखौती मुक्तांगन गये। यहंा बच्चों ने अपने आपको पुलकित और उत्साहित अनुभव किया। प्रकृति के साथ-साथ छत्तीसगढ़ की लोक नृत्य कर्मा, पंथी, सुआ, शैला, नृत्य आदि को देखकर रोमांचित भाव विभोर हुए। ग्रामीण अंचलों के बच्चो के लिए शहरी जीवन शैली के बीच अपनों के भाव को पाकर उत्साहित हो रहे थे। रायपुर की सौन्दर्य उॅची-उॅची ईमारते पास से गुजरते हवाई जहाज आदि बच्चों का मन मोह लिया। यहंा बुढ़ा तालाब जिसे विवेकानंद सरोवर कहा जाता है। अपनी ऐतिहासिक गाथा के साथ संरक्षण के संदेश देती है। दुधाधारी मठ बच्चों और पालको के लिए आस्था व ऐतिहासिकता का केन्द्र बन गया। शिक्षक के द्वारा यहंा के गढ़ के बारे में बताया गया कि रामपुर और रतनपुर प्राचीन छत्तीसगढ़ के दो भाईयों की बंटवारा हुई। जिसमें 18-18 गढ़ स्थापित कर इन शहरों को राजधानी बनाया गया। जिन्हें पुस्तको में पढ़ते है, उन्हें शैक्षणिक भ्रमण कर रूबरू हुए। इन्हें मार्गदर्शन करने में प्रधान पाठक गिरधर लाल कोसरे, कस्तुरी वर्मा, संतोष कुर्रे, अमित रात्रे, शिव प्रसाद सहित पालको का योगदान रहा। बच्चों में अनुभव आधारित ज्ञान पाकर आनंदित हुए।